ग़ज़ल
सोचता हूं के मुक़द्दर तो नहीं बदलेगा।
वो तो पत्थर है तो पत्थर तो नहीं बदलेगा।
इश्क़ में ख़ुद को बदलते हैं बदलने वाले।
पर कोई मेरे बराबर तो नहीं बदलेगा।
गर बदलने हैं तुझे अपने इरादे तो बदल।
दो क़दम साथ में चलकर तो नहीं बदलेगा।
छोड़कर सारा जहां जिसको तुम्हें पाना है।
जांच लो पहले वो दिलवर तो नहीं बदलेगा।
वो मेरे ख्वाब में आते हैं नज़र कम “तन्हा”।
यार चश्मे का ये नम्बर तो नहीं बदलेगा।
इकबाल तन्हा