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28 Aug 2022 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल ———

बस यही सोच कर मैं तो इतराई हूँ ।
तेरी खातिर ही दुनिया में मैं आई हूँ ॥

आँच तुझपर न आने मैं दूँगी कभी,
कितनी मुश्किल से तुझको मैं पाई हूँ

प्यार का तेरे मुझ पर असर यह हुआ,
आइना जब भी देखूँ तो शरमाई हूँ ॥

दूर कर दे न बैरी ज़माना हमें ,
मैं ज़माने की रस्मो से घबराई हूँ ॥

कोई कुछ भी कहे आज “ममता”मुझे,
तुम न कहना कभी मैं कि हरजाई हूँ॥

डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद

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