ग़ज़ल
ग़ज़ल ———
बस यही सोच कर मैं तो इतराई हूँ ।
तेरी खातिर ही दुनिया में मैं आई हूँ ॥
आँच तुझपर न आने मैं दूँगी कभी,
कितनी मुश्किल से तुझको मैं पाई हूँ
प्यार का तेरे मुझ पर असर यह हुआ,
आइना जब भी देखूँ तो शरमाई हूँ ॥
दूर कर दे न बैरी ज़माना हमें ,
मैं ज़माने की रस्मो से घबराई हूँ ॥
कोई कुछ भी कहे आज “ममता”मुझे,
तुम न कहना कभी मैं कि हरजाई हूँ॥
डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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