ग़ज़ल
ग़ज़ल —–
नफ़रतों का सजा आज बाज़ार है।
जिसको देखो वही अब जफ़ाकार है ॥
खेल में भी सियासत है बैठी हुई,
जीतता कब यहाँ कोई हक़दार है॥
घुल रहा ज़हर हर सू हवाओं में अब ,
कौन इसके लिए अब ख़तावार है।।
आज सम्बन्ध पैसे पे निर्भर हुए,
बिक रहा प्यार दुनिया ख़रीदार है॥
मैं नहीं,तू नहीं और वो भी नहीं,
कौन”ममता”यहाँ फिर गुनहगार है ।।
डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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