ग़ज़ल
रखो अपने लिए ऐ रहबरो यह फ़लसफ़े अपने
सफ़र में मुझको काम आएंगे मेरे हौसले अपने
मैं किन अपनों की बातें कर रही हूँ आप हैरां हूँ
हवस में माल-ो-ज़र की खो गए अक्सर मेरे अपने
नज़र में आसमानों की बुलन्दी ले के क्या निकली
ज़मीनों से जुड़े जो सिलसिले थे खो गए अपने
मुसाफ़त हमने दानिस्ता तलाशी है बियाबाँ की
उसूल अपने हैं मेरे और मेरे फ़लसफ़े अपने
हमारी ज़ुल्फ़े बरहम को अजी तुम क्या संवारोगे
खुदा से भी न सुलझे आज तक ये मसअले अपने
भली नासेह की महफिल, भले हैं आप भी हज़रत
हमारे वास्ते अच्छे भले हैं मामले अपने
कहाँ तक हम को ये बरबादियाँ हैरान रक्खेंगी
ज़रा देखो तो शैली खूब हैं ये हौसले अपने