ग़ज़ल
ख़ुद में ख़ुद की तलाश करता हूँ
ख़ुद को जब भी मैं खास करता हूँ
मुझे अक्सर वहीं खुश करतें हैं
जिन्हे हर पल उदास करता हूँ
दूर मुझसे वो चला जाता है
जिसको जितना मैं पास करता हूँ
ख़ुद के जेहन में ओढ़ लेता हूँ मैं
कोई चेहरा लिबास करता हूँ
अब ‘महज़’ रूह है मेरा बाकी
जिसको छूने की आस करता हूँ