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28 Jun 2022 · 1 min read

ग़ज़ल

मैं हूँ शीशा मुझे पत्थर से बचाते रहिए।
आईने की निगाह मुझको दिखाते राहिए।

कौन कहता है कि काँटे ख़राब होतें हैं।
फूल का उनको बस एहसास दिलाते रहिए।

रात के बाद सुबहो आके यहीं कहती है।
दर्द के साये चरागों से हटाते रहिए ।

गीत मज़हब की तरह हो न सवालात कहीं।
गज़ल के साथ मिलाकर के सुनाते रहिए ।

रोटियों की न कोई जात धरम होती है ।
बनके इंसान महज़ भूख मिटाते रहिए।

Language: Hindi
1 Like · 200 Views
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