ग़ज़ल
कभ्भो पत्थर भी फूल हो जाला ..
प्यार से जब कुबूल हो जाला
जेकरा काँटा भरल ह मनवा में
फूल ओकरा फिज़ूल हो जाला.
जब चले मन में तीन कै तेरह
बिना चहले भी भूल हो जाला
कर्ज एहसान कै जे खा जाला
ब्याज सम्मित वसूल हो जाला
जे ‘महज़’ सब बेकार देखेला
ओके कुमकुम भी धूल हो जाला