ग़ज़ल
ग़ज़ल
जहाँ खुशियों के अवसर देख लेना।
वहीं पर ग़म भुलाकर देख लेना।
सिवा तेरे नहीं है और कोई।
भले इस दिल के अंदर देख लेना।
कभी तू झाँक कर आँखों में मेरी।
छिपा गम का समंदर देख लेना।
तुम्हारे प्रश्न कितने ही सरल हों।
नहीं देगा वो उत्तर देख लेना।
समझते हो जिसे तुम नर्म नाजुक।
उसी के दिल को पत्थर देख लेना।
कलेजे में हमारे दुश्मनों के ।
मिलेगा मौत का डर देख लेना।
झुकोगे पाँवों में कश्यप अगर तो।
लगाऐगा वो ठोकर देख लेना।
दीपाली कालरा सरिता विहार नई दिल्ली