ग़ज़ल
ग़ज़ल
जरा दुख प्यार में पाया तो क्या है।
मजा इस दर्द में आया तो क्या है।
मदद की थी जरूरत खूब जिसको।
उसी को लूटकर खाया तो क्या है।
हमारे पास है माटी का दीपक।
अंधेरा हर तरफ छाया तो क्या है।
दिए हैं दर्द काँटों ने सभी को।
गुलों ने बाग महकाया तो क्या है।
नहीं आँसू हुए हैं बंद उस के।
खुशी का गीत भी गाया तो क्या है।
हमें मालूम है उस बेवफ़ा ने।
सितम हम पे अगर ढाया तो क्या है।
खरे हुए हैं हम ही साबित।
भरोसा वो नहीं लाया तो क्या है।
दीपाली कालरा