ग़ज़ल
ग़ज़ल
पूरब को मैं पश्चिम कह दूँ ,
मुझको है यह स्वीकार नहीं
इमली को आम करूँ कैसे,
मैं कवि हूँ , थानेदार नहीं
ईश्वर अल्ला में भेद करूँ,
जल में सूई से छेद करूँ
यह घोर अनीति करूं कैसे
मूर्खों का हूँ सरदार नहीं
कैसे कह दूँ मेरे घर की
चोरी में हाथ उसी का है ,
माना वह मेरा दुश्मन है
पर कभी रहा है ,यार नहीं
मालिक की मर्जी के बिन मैं,
कैसे हेराफेरी कर दूँ,
मैं हूँ उस युग का हरिश्चंद्र,
इस युग का चौकीदार नहीं
घर के सदस्य उपवास करें
मैं और कहीं ,रबड़ी चाभूँ
अवधू यह पाप करूँ कैसे
मैं पब्लिक हूंँ, सरकार नहीं
अवध किशोर ‘अवधू’
मो. न.9918854285