ग़ज़ल
ग़ज़ल
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थोड़ा सा पीछे हूॅं , पर लौट के आना है ।
एक बार छाया तो वापस नहीं जाना है।।
बस पाठक की अपेक्षा पर खड़े उतर जाएं।
फिर हर रचना पर ही, मुझे धूम मचाना है।।
दिन – रात ही कड़ी मेहनत कर रहे हम यहाॅं ।
साहित्य जगत में कुछ करने की जो ठाना है।।
पाठकों से आग्रह है कि सबकी रचना पढ़ें ।
सबमें ही खुशी और उत्साह जो जगाना है ।।
कहता ‘अजित’ कि सभी अपनी भागीदारी दें।
पर आज तलक हमने हार ही कब माना है ।।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
दिनांक : १९/०६/२०२१.
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