ग़ज़ल
कर्मों का फल मिलता है कब
इंसां फूल सा खिलता है कब
रंग बिरंगी इस दुनिया में
साथ सभी का मिलता है कब
बंद हुए दरवाज़े घर के
पत्ता कोई हिलता है कब
उम्मीदों का ये दामन भी
फट जाने पर सिलता है कब
“सीरत” झूठ कड़ा इतना है
छिलका उसका छिलता है कब
शीला गहलावत सीरत
चण्डीगढ़