ग़ज़ल
मेरी ज़िंदगी के पन्नों में तेरा अब नाम नहीं है,
क्या ये सच है कि अब वो जमाने में गुमनाम नहीं है,
सब पूछते हैं आज भी मुझसे कैसी है तू,
कैसे बताऊं सबको की हम अब साथ नहीं है,
चाहूं तो तुझे रुसवा कर सकता हूँ सरे जमाने में,
अपनी ज़मीर से गिर जाए हम वो इंसान नहीं है,
बीते दिनों के लम्हें अक्सर आंखों के सामने आते हैं,
बस एक कसक है दिल में की अब तू मेरे साथ नहीं है,
हमें बिछड़े कई दिन कई रात कई साल – महीने हो गए,
वक़्त बदले, हालात बदले मगर आज भी हम इंसान वहीं है।