ग़ज़ल-
सन् 2020 की आखिरी ग़ज़ल
जा रहा है साल पिछला,इक नया फिर साल दे!
कौन जाने कैसे बीते,आना वाला साल ये।
नौकरी छूटी हैं कितनी,हो गये बेघर बहुत,
हों सभी आबाद अब तो,कह रहा इंसान रे!
जान कितनी हैं गँवाईं,नाम कोविड रात दिन,
और जानें अब न जायें,मान जाये साल ये।
क्रूर सरकारें हुईं हैं,लूटती मज़लूम को,
फिर से ऐसे बिल न लायें,हो रहे नित हादसे।
रो रहे थे लोग अनगिन,राह में चलते हुए,
लॉकडाउन फिर न आये,राम जी के वास्ते।
धन्य हैं वो लोग सारे,हाथ थामा गैर का,
पीर खुद सहकर निभाया,फर्ज को जी जान से।
ऐ ‘नवल’ अब तू विदाकर,जिंदगी की पीर को,
नित नया उल्लास भरकर,प्यार की सौगात दे।
ग़ज़लकार
नवल किशोर शर्मा ‘नवल’
बिलारी, मुरादाबाद
मो0 नं0- 9758280028