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16 Oct 2020 · 1 min read

ग़ज़ल

ग़ज़ल

हसनैन आक़िब

अभी से अक़्ल के पीछे पड़े हैं

ये बच्चे कितने बूढ़े हो गए हैं

जिन्होंने मुफ़्लिसी में हाथ थामा

मुझे अब वो बुरे लगने लगे हैं

ना काग़ज़ की ज़रूरत ना क़लम की

कुतुब ख़ाने मेरे दिल के खुले हैं

जहां बीवी के क़दमों में है बेटा

वहीं मां बाप ठोकर में पड़े हैं

ये बरगद अपने फैलाओ पे ख़ुश हैं

मगर अन्दर से कितने खोखले हैं

हर एक मौज़ू पे रखते हैं ये नज़रें

मेरे अशआर थोड़े मनचले हैं

था जिन में ज़िक्र तेरी बेबसी का

वो अफ़साने मुझे सच्चे लगे हैं

फ़रिशतो , इन को अपने पास रख लो

ये आंसू अौर की ख़ातिर बहे हैं

तुम्हें सोना समझकर छूने वाले

ना जाने कैसे मिट्टी हो गए हैं

2 Comments · 299 Views
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