ग़ज़ल
मिलने की तो बात ही क्या,
जब बात भी करना मुश्किल हो,
बैचैनी बढ़ बढ़ जाती हो
साँसे रुक रुक कर चलती हो।।
हजार आंसू जब छलकते हो,
कई राते बेनींद गुज़रती हो ।
दिल की ख़लिश बुझाने को,
तब एक ग़ज़ल बनती हैं ।।