ग़ज़ल
++++++++++( ग़ज़ल )++++++++
२१२२ १२२ १२२ २१२
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अश्क पलकों में उनसे छुपा कर भी देखा
ना हुआ कुछ असर जो बहा कर भी देखा
चांद तारों से वो रौशन थे निगाहों में जो
उसे फलक से जमीं पे उतरते भी देखा
जो निगाहों से दिल में उतर आए उन्हें
खुद से नजरें चुरा कर के जाते भी देखा
जो थे हाथों की लकीरों में सबसे ऊपर
छोड़ कर हाथ दबे पांव जाते भी देखा
अब तो “गौतम” भरोसा करें तो किस पर
रुह को तन से निकल कर जाते भी देखा
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© गौतम जैन ®