ग़ज़ल
कोरोना भागेगा ख़ुद
कुछ दिन के अफ़साने हैं।
ग़म का है क्यूँ ग़म यारा
ग़म तो आने जाने हैं।।
जलती तो है शम्मा फिर
मरते क्यूँ परवाने हैं।।
लफ़्ज़ों की ख़ुश्बू से ही
बागीचे महकाने हैं।।
जज़्बातों का है दरिया
गोते ख़ूब लगाने हैं।।
अपनी क़िस्मत के तारे
शिद्दत से चमकाने हैं।।
है दर्द से राब्ता अपना
हम उसके दीवाने हैं।।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
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