रमजान
मेरे जिन्दगी का पहला ऐसा रमजान है,
अकेले ही इफ्तार से मन हलकान है।
नये कपड़ों के लिए परेशान हैं बच्चे,
लाक डाउन, कोरोना से वे अनजान हैं।
छुट रही सबकी तराबीह की नमाजे,
कहीं-कही बन्द तो मस्जिद की अज़ान है।
ये महामारी शहरी होने का एहसास कराती है,
मिलना -जुलना हम गांव वालों की पहचान है ।
ईद की नमाज अदा शायद घर ही हो “नूरी”,
क्या करें यही एक मात्र समाधान है ।
नूरफातिमा खातून” नूरी”
(कुशीनगर)11/5/2020