ग़ज़ल
“ग ज़ ल”
————————-
घाव पर चोट बनाये रखिये;
बेअसर न हो,दर्द बनाये रखिये।
दुश्मन हो,दोस्ती,बनाये रखिये;
कम हैं अभी नश्तर चुभाये रखिये।
धूप है ग़र,साया बनाये रखिये;
अंधेरे में दिया जलाये रखिये।
रहें नज़दीकियां इतनी बनाये रखिये;
जाना है साथ ,दूरियाँ बनाये रखिये।
दौर मुलाक़ातों का बनाये रखिये;
याद रहे चेहरा,दिल को बताये रखिये।
साज़िशें हैं इन्हें छिपाये रखिये;
राज़ हैं गहरे इन्हें दबाये रखिये।
————————-
राजेश”ललित”शर्मा
१-४-२०१७