ग़ज़ल
महका दिया है तूने पाकीज़गी से यूं।
पहचानती है दुनिया दीवानगी से अब।।
देखा नहीं है उसको सच बात है लेकिन।
मिलने लगा हूं हर दिन उस अजनबी से अब।।
जो भी दिया है उसने काफी दिया है ये।
शिकवा नहीं है कुछ भी तो जिंदगी से अब।।
कवि गोपाल पाठक,
बरेली(उप्र)