ग़ज़ल
सोचो की दुनिया से निकल जाना है
ऐ हवा तुझे बता तो किधर जाना है
नाज़ुक दिल के होते हैं हम इंसान
वक्त मौसम है इसे तो बदल जाना है
आंखें मूंदें -मूंदें बैठें अपने घरों से
यादों के झरोखे में फिसल जाना है
हम लाख तसल्ली खुद को दे दें
वक्ते जुदाई पर आंखें छलक जाना है
जाये जब कोई दूसरे जहां में यारों
नाज़ुक से दिल को तड़प जाना है
फ़रिश्ते नहीं है हम इंसान या खुदा
कभी गिरना कभी सम्भल जाना है
छोटी सी जिंदगी में “नूरी “तुम्हें
खुशबू की तरह बिखर जाना है
नूरफातिमा खातून” नूरी”
१/४/२०२०