ग़ज़ल
‘उड़ती खबर’
आज उड़ती ख़बर सुनी सी है।
वक्त रफ़्तार कुछ थमी सी है।
दिल करे देखती रहूँ जी भर
बेकरारी ज़रा बढ़ा सी है।
याद में धूप सी तपन दिनभर
साँझ भी प्रीत बिन जली सी है।
चाँद का रूप भी नहीं भाए
प्यार में लग रही कमी सी है।
खोलते राज़ डगमगाते कदम
मिल रही आज बेरुखी सी है।
आ गया कौन दरमियां अपने
होठ पे बात क्यों दबी सी है।
आशिकी ज़िंदगी समझ ‘रजनी’
मुस्कुरा आँख में नमी सी है।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)