ग़ज़ल
ग़ज़ल
जहां से बदी को हटाना पड़ेगा।
कि घर नेकियों का बसाना पड़ेगा।
कभी तो मुकद्दर को रोशन करेगा
कि सूरज इधर भी बुलाना पड़ेगा।
चमन में खिलेंगे कभी गुल भी यारो
कि सहरा को गुलशन बनाना पड़ेगा।
लिखा कर न लाया बपौती कोई भी
कि इक दिन तो हर इक को जाना पड़ेगा।
चलो ढूंढ लें ज़िन्दगी का किनारा
कि कश्ती भंवर से बचाना पड़ेगा ।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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