ग़ज़ल
#बह्र ? #बहरे_रजज_मख्बून_मरफू_मुखल्ला
#वज़्न ? १२१२ २१२ १२२ १२१२ २१२ १२२
#मुफाइलुन_फ़ाइलुन_फऊलुन_मुफाइलुन_फ़ाइलुन_फऊलुन
#काफ़िया ? ‘ ई ‘
#रदीफ़ ? ‘ है’
#रचना ? _______________________________________________
ग़ज़ब ग़ज़ब है ये हुस्न तेरा, ग़ज़ब सनम तेरी सादगी है।
ग़ज़ब ग़ज़ब हैं ये झील आंखें ग़ज़ब ये जुल्फों की बानगी है।
ये सुर्ख गालों की खूब जोड़ी, नशे में लबरेज होंठ तेरे।
उठा के पलकों को मुस्कुराना गिराना बिजली भी लाज़मी है।
छनकती पाजेब जब भी तेरी, उदास दिल को सुकून मिलता।
तेरे ही हाथों में जान मेरी तू ही सनम मेरी दिल्लगी है।
तू इश्क़ का जैसे हो समन्दर मैं पास होकर भी तड़फड़ाऊं।
मिठास का स्वाद जैसे गूंगा, बता न पाऊं क्या बेबसी है।
तेरे ही साये में बीते हर पल ज़हर जुदाई न पी सकूंगा।
“सचिन” की बस इतनी इल्तिज़ा है, ऐ जाने जां तुझसे आशिक़ी है।।
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पूर्णतः स्वरचित, स्वप्रमाणित व अप्रकाशित
रचनाकार का पूरा नाम: पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
शहर का नाम : मुसहरवा (मंशानगर) पश्चिमी चम्पारण
बिहार