ग़ज़ल
लिया मुख मोड़ ही सबने दिखाई देता है।
मिलें खुशियाँ तुझे मन ये दुहाई देता है।
नहीं कोई शिकायत है हमें इस बात की-
रहे सब खुश सदा दिल ये बधाई देता है।
कहे सबने कभी जो बात अपना मान कर-
वहीं अब बोल कानों में सुनाई देता है।
सितम ढाये सभी ने जो हमें मालूम है-
भला नफरत कहां किसको भलाई देता है।
बहुत मजबूर है अब तो जुदाई से सचिन-
मगर हरदम वहीं सबको सफाई देता है।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’