ग़ज़ल
#तिथि – ४/१/२०२० #दिवस – शुक्रवार
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भले ढूंढो दिया लेकर नहीं अब यार मिलता है।
दगा धोखा फरेबो से भरा संसार मिलता है।
ख़लिस इस बात की दिल में छुपाए जी रहा हूं मैं-
भरोसे का कतल करके दगा हरबार मिलता है।
यहाँ कहते सभी हम से यार तुम प्यार कर लेना-
मगर समझा जिन्हें दिलवर वहीं खूंखार मिलता है।
रक़ीबों का शहर में अब लगा बाजार है दिखता-
वफ़ा की राह में दिलवर यहाँ बेजार मिलता है।
सुलगती है वफ़ा यारों यहाँ तंदूर में हर दिन-
दिलों में बेहयाई का लगा बाजार मिलता है।
भरोसा भूलकर भी अब किसी पे कर नहीं सकते-
कतल करने सगा अपना फ़क़त तैयार मिलता है।
बनाया था जहां उसने सचिन बस प्यार की खातिर-
यहाँ अब प्यार को केवल मुकम्मल हार मिलता है।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’