ग़ज़ल (सिंधड़ी सी ….
ग़ज़ल
सिंधड़ी सी यादें धुँधला सा आइना।
लौं अब भी दरमियां अपने मगर है।
श़िकन नही ज़रा है ज़ख्म़ी जिगर में।
छिड़कता नमक हर बश़र है।
है बारीक धागा जो बांधे है हमको।
पुल यें मिलन का मेंरे हमसफर है।
सबर से ना लम्बा कोई लम्हा जहॉ में।
ग़र है सबर तो सुखद हर सहर है।
इम्तिहान-ए-ज़िन्दग़ानि है हर इक लम्हा।
इसे पास क़ाबिल ही करते मगर है।
बहुत मुश्किल -सुथा-यें फ़लस़फा है।
इसको मुक़म्म़ल समझना ही हुनर है।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर उत्तराखण्ड