ग़ज़ल
—–ग़ज़ल—–
ये ज़मीं हमारी है
मेरी ना तुम्हारी है
हिन्दू या मुसलमाँ हों
सबको जाँ से प्यारी है
प्यार कल दिया जिसने
क्यों लिए कटारी है
भारती के चरणों को
गंगा ने पखारी है
भारती के चरणों को
गंगा ने पखारी है
कुछ न हो रहा हासिल
जंग जो ये जारी है
कुछ न हो रहा हासिल
जंग जो ये जारी है
नफ़रतें न फैलाओ
इसने ज़ुल्म तारी है
सच लिखो ये कहे हमसे
ये क़लम हमारी है
क़र्ज़ देश का “प्रीतम”
अब तलक उधारी है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती( उ०प्र०)