ग़ज़ल
——–ग़ज़ल——
जीस्त में वही दम ख़म उम्र भर नहीं रहता
ये जवानी का मौसम उम्र भर नहीं रहता
नाज़ कर न तू इतना सांस की तलातुम पर
धडकनों में ये सरगम उम्र भर नहीं रहता
फूल बन के मत जीना पत्थरों की दुनिया है
बन के कोई भी शबनम उम्र भर नहीं रहता
देख कर न तुम हँसना मुफ़लिसों की मज़बूरी
ये अमीरी का परचम उम्र भर नहीं रहता
ज़िन्दगी मिली है तो नेकियाँ कमा बन्दे
दिल से साँसों का संगम उम्र भर नहीं रहता
इस तरह न घबरा दिल बेरुख़ी में दिलबर की
नफ़रतों का ये आलम उम्र भर नहीं रहता
कोई उजड़े या बिखरे या मरे कोई “प्रीतम”
इन दरिन्दों को ये ग़म उम्र भर नहीं रहता
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती [उ० प्र०]