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26 Dec 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

——-ग़ज़ल——

झूठ का राज चार सू देखो
कर दिया सच ने सर निगू देखो

ये सियासत अज़ब है शै जिसकी
बस लड़ाने की आरज़ू देखो

बागबाँ खौफ़ में रहे हर पल
लुटती कलियों की आबरू देखो

फ़र्क कोई न हिन्दू मुस्लिम में
सब में है एक सा लहू देखो

बन के उल्फ़त का एक शैदाई
घूमता हूँ मैं कू-ब-कू देखो

दौर कैसा जिसे कहो अपना
जान का बन गया अदू देखो

नफ़रतों का वतन में ऐ “प्रीतम”
कितना फैला है आज बू देखो

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती [ उ० प्र०]

1 Comment · 245 Views
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