ग़ज़ल
हर कोई होगा वफ़ादार ज़रूरी तो नहीं
सब हों अच्छाई के अवतार ज़रूरी तो नहीं
वक़्त की झुर्रियों को आज़ छुपाने के लिए
आइना होगा मददगार ज़रूरी तो नहीं
चुल्लू भर पानी में मर जाता है मरने वाला
डूबने के लिए मझधार ज़रूरी तो नहीं
वो जो नफ़रत से मुझे देखता हो मुद्दत से
मुझसे हो जाए उसे प्यार ज़रूरी तो नहीं
डगमगाती है वो क़श्ती जो घिरी तूफ़ां में
साथ दे उसका ये पतवार ज़रूरी तो नहीं
फ़ैसला सोच के फाँसी का सुनाना साहेब
मरने वाला हो गुनहग़ार ज़रूरी तो नहीं
जिस तरह उसके लिए मैं हूँ तड़पता “प्रीतम”
वह भी हो इश्क़ में बीमार ज़रूरी तो नहीं
. प्रीतम राठौर भिनगाई
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)