ग़ज़ल
रूह भी चाहती न दूरी है
आपके बिन ये जां अधूरी है
इब्तिदा दिन की होती तुझसे ही
सांस भी तेरे बिन न पूरी है
तिश्नगी इश्क की न मिट पाई
आपका साथ बस ज़रूरी है
क़ल्ब भी नाम जप रही उनका
बेवफाई तो दिल पे छूरी है।
नींद क्यों रात को नहीं आती
हाय कैसी यह मजबूरी है।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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