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8 Aug 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

नहीं मिट रही ये मेरी तिश्नगी है
जो मुद्दत से मेरे जिगर में बसी है

समझते नहीं मेरे ज़ज़्बात को जब
ये किस क़िस्म की दोस्ती आपकी है

बहुत ख़ुशनुमा है बहारों का मौसम
नदी का किनारा खिली चाँदनी है

लुभाती है दिल को ये झरनों की कल कल
ये बादे सबा में घुली ताज़गी है

ये दिल था दीवाना हुआ शायराना
तुम्हें देख कर ही हुई शायरी है

तसव्वुर में तुमको बसा कर ही जानां
कि महफ़िल में हमनें ग़ज़ल ये पढी है

नहीं रह सकूँ दूर तुझसे मैं “प्रीतम”
कसम से मेरी जान तू ज़िन्दगी है

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)
9559926244

206 Views
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