Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Aug 2019 · 3 min read

ग़ज़ल

मुकद्दर में मेरे मुहब्बत नहीं है।
मुझे कोई शिकवा, शिकायत नहीं है।

तराजू में तोली मुहब्बत हमारी
उन्हें दिल लगाने की आदत नहीं है।

ख़ता जो न की थी सज़ा उसकी पाई
ज़हन में किसी के स़दाकत नहीं है।

सिसकते लबों से ज़हर पीके रोए
सितम इतने झेले कि कीमत नहीं है।

सुकूं के लिए सब अमन, चैन खोया
जुदा हो गए पर ख़िलाफत नहीं है।

बताएँ किसे हाले ग़म ज़िंदगी का
क़हर रोक ले ऐसी ताकत नहीं है।

तलब-औ-तमन्ना अधूरी है ‘रजनी’
बसर इश्क हो ये रिवायत नहीं है।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

ख्वाब में आए हमारे यूँ हक़ीक़त की तरह।
हो गए शामिल दुआ में आप बरकत की तरह।

आरजू है उम्रभर का साथ मिल जाए हमें
हसरतें दिल की कहें रखलूँ अमानत की तरह।

ख़्वाहिशों की शिद्दतों से आपको हासिल किया
मिल गए हो ज़िंदगी में आप ज़न्नत की तरह।

लग रहा मुझको चमन में इत्र सा बिखरा हुआ
जिस्म में खुशबू महकती है नज़ारत की तरह।

पा रही हूँ प्रीत तेरी बढ़ रही है तिश्नगी
इश्क की सौगात जैसे है इनायत की तरह।

शाम गुज़रें सुरमयी आगोश भरती यामिनी
प्यार में खुशियाँ मिलीं मुझको विरासत की तरह।

चूमती उन चौखटों को आपके पड़ते कदम
आज उल्फ़त भी लगे ‘रजनी’ इबादत की तरह।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

ज़माने बीत जाते हैं

कभी उल्फ़त निभाने में ज़माने बीत जाते हैं।
कभी मिलने मिलाने में ज़माने बीत जाते हैं।

कभी वो दर्द देते हैं कभी नासूर बनते हैं
कभी मरहम लगाने में ज़माने बीत जाते हैं।

कभी ऊँची हवेली में मिली दौलत रुलाती है
कभी दौलत कमाने में ज़माने बीत जाते हैं।

कभी वोटिंग किसी के नाम पर सत्ता दिलाती है
कभी सत्ता बनाने में ज़माने बीत जाते हैं।

कभी चाँदी चढ़े रिश्ते यहाँ किश्तें भुनाते हैं
कभी किश्तें चुकाने में ज़माने बीत जाते हैं।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

2122 2122 212

‘आदमी’

ऐब दुनिया के गिनाता आदमी।
आपसी रंजिश दिखाता आदमी।

चंद सिक्कों में बिकी इंसानियत
भूल गैरत मुस्कुराता आदमी।

चाल चल शतरंज की हैवान बन
भान सत्ता का दिलाता आदमी।

मुफ़लिसी पे वो रहम खाता नहीं
चोट सीने पे लगाता आदमी।

मोम बन ख़्वाहिश पिघलती हैं यहाँ
आग नफ़रत की बढ़ाता आदमी।

घोल रिश्तों में ज़हर तन्हा रहा
बेच खुशियाँ घर जलाता आदमी।

गर्दिशें तकदीर में ‘रजनी’ लिखीं
ख्वाब आँखों से सजाता आदमी।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’

आशिक़ी में बेवफ़ाई ने रुलाया है बहुत।
मुस्कुराके दर्द होठों ने छुपाया है बहुत।

हो रही बारिश सुलगती हैं यहाँ तन्हाइयाँ
बेवफ़ाई की मशालों ने जलाया है बहुत।

धूप यादों की जलाकर राख मन को कर रही
खोखली दीवार को हमने बचाया है बहुत।

फूल कह कुचला किए वो और कितना रौंदते
जख़्म अपने क्या दिखाएँ दिल जलाया है बहुत।

आज नश्तर सी चुभीं खामोशियाँ जाने जिगर
नफ़रतों का धुंध सीने से मिटाया है बहुत।

वक्त की आँधी बुझा पाई न दीपक प्यार का
बेरुखी ने प्यार कर हमको सताया है बहुत।

अश्क छाले बन अधर पर फूट ‘रजनी’ रो रहे
खार से झुलसे लबों को फिर हँसाया है बहुत।

डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी(उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर

1 Like · 296 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ. रजनी अग्रवाल 'वाग्देवी रत्ना'
View all

You may also like these posts

मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
Anand Kumar
- खुद को करना बुलंद -
- खुद को करना बुलंद -
bharat gehlot
मसला ये नहीं कि लोग परवाह क्यों नहीं करते,
मसला ये नहीं कि लोग परवाह क्यों नहीं करते,
पूर्वार्थ
भोर पुरानी हो गई
भोर पुरानी हो गई
आर एस आघात
संस्कारी बच्चा-   Beby तुम बस एक साल रह लो कुॅवांरी,
संस्कारी बच्चा- Beby तुम बस एक साल रह लो कुॅवांरी,
Shubham Pandey (S P)
प्रीति की आभा
प्रीति की आभा
Rambali Mishra
घनघोर इस अंधेरे में, वो उजाला कितना सफल होगा,
घनघोर इस अंधेरे में, वो उजाला कितना सफल होगा,
Sonam Pundir
बचपन याद बहुत आता है
बचपन याद बहुत आता है
VINOD CHAUHAN
जहां सीमाएं नहीं मिलती
जहां सीमाएं नहीं मिलती
Sonam Puneet Dubey
25- 🌸-तलाश 🌸
25- 🌸-तलाश 🌸
Mahima shukla
ज्योतिर्मय
ज्योतिर्मय
Pratibha Pandey
I love u Mummy.
I love u Mummy.
Priya princess panwar
गुरू शिष्य का संबन्ध
गुरू शिष्य का संबन्ध
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
ममता का सागर
ममता का सागर
भरत कुमार सोलंकी
"Multi Personality Disorder"
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
देखना मत राह मेरी
देखना मत राह मेरी
अमित कुमार
क्षणिका :
क्षणिका :
sushil sarna
"उम्र"
Dr. Kishan tandon kranti
// माँ की ममता //
// माँ की ममता //
Shivkumar barman
पितृ तर्पण
पितृ तर्पण
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
लम्हा लम्हा कम हो रहा है
लम्हा लम्हा कम हो रहा है
Rekha khichi
दिल टूटेला छने छन कई बेर हो
दिल टूटेला छने छन कई बेर हो
आकाश महेशपुरी
#दीनदयाल_जयंती
#दीनदयाल_जयंती
*प्रणय*
*पत्रिका समीक्षा*
*पत्रिका समीक्षा*
Ravi Prakash
आज का युग ऐसा है...
आज का युग ऐसा है...
Ajit Kumar "Karn"
इतना ही बस रूठिए , मना सके जो कोय ।
इतना ही बस रूठिए , मना सके जो कोय ।
Manju sagar
कविता
कविता
Nmita Sharma
फिर वसंत आया फिर वसंत आया
फिर वसंत आया फिर वसंत आया
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
तुम्हें पाने के बाद मुझे सिर्फ एक ही चीज से डर लगता है वो है
तुम्हें पाने के बाद मुझे सिर्फ एक ही चीज से डर लगता है वो है
Ranjeet kumar patre
त’आरूफ़ उसको
त’आरूफ़ उसको
Dr fauzia Naseem shad
Loading...