ग़ज़ल
ओ कुछ राग मुहब्बत का भी छेडा जाए
इस तरह दौरे तनाफुर को मिटाया जाए
करते पामाल जो गुलशन कली को यारों
उन दरिन्दों कभी भी नहीं बख़्शा जाए
जिसकी ताबीर किसी के हो लहू से लिपटी
ख़्वाब ऐसे नहीं आँखों में सँजोया जाए
जिन दरख़्तों में समर लगते सियासी यारो
ऐसे पेड़ों को भी अब उखाड़ा जाए
कुछ तो नेता हैं यही सोचते कुर्सी पाकर
किस तरह देश की लुटिया को डुबोया जाए
अब उजड़ने नहीं पाए किसी मुफ़लिस का घर
और बेबस न यहाँ कोई सताया जाए
बुझ चुके हैं जो यहाँ आस के दीपक “प्रीतम”
प्यार के तेल से फिर उनको जलाया जलाया जाए
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)