ग़ज़ल
—ग़ज़ल—–
घर न कोई मकान है प्यारे
छत मेरी आसमान है प्यारे
ये ज़मीं है मेरे लिए बिस्तर
मेरा ये ही निशान है प्यारे
ग़म उठा कर भी ये कहेंगे हम
मेरा भारत महान है प्यारे
क़द्र उसकी भी कुछ नहीं है यहाँ
सबका जो सायबान है प्यारे
कैसे फ़रियाद वो सुने मेरी
लग रहा बे ज़ुबान है प्यारे
चार सू भुखमरी है बेकारी
और हथेली पे जान है प्यारे
जिन्दगी का ये कौन सा “प्रीतम”
आ गया पायदान है प्यारे
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती(उ०प्र०)