ग़ज़ल
—ग़ज़ल—-
गर दुआ का शजर नहीं होता
कोई आसां सफ़र नहीं होता
किस तरह जाता तू बुलंदी पर
गर दुआ में असर नहीं नहीं होता
काश चलता न दिल पे ख़ंज़र तो
दर्दे दिल रात भर नहीं होता
हौसलों से उड़ान करता है
जिस्म पर जिसके पर नहीं होता
खौफ़ होता ख़ुदा का तुझको अगर
इस तरह दर-ब-दर नहीं होता
लूट ही लेते राहजन मुझको
तू अगर राहबर नहीं होता
ऐसा संग दिल है वो मेरा “प्रीतम”
प्यार का कुछ असर नहीं होता
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती( उत्तर प्रदेश)