ग़ज़ल
——– ग़ज़ल ——
कुछ ग़रीबों को भी दो ख़ुशी ईद में
उनको मिल जाएगी ज़िन्दगी ईद में
फ़र्क छोटे बड़े का न हो दरमियाँ
पाट दो खाइयाँ मज़हबी ईद में
बाँटो खैरात सब आज कुछ इस तरह
दिखने पाए नहीं मुफ़लिसी ईद में
छोड़ कर हाथ दिल को मिलाओ सभी
फिर मसर्रत मिलेगी नयी ईद में
जल रहीं ख़्वाहिशें मुफ़लिसों की यहाँ
बस बहाओ हवा प्यार की ईद में
मुफ़लिसों के लबों को जो मुस्कान दो
सच्ची ख़ुशियाँ मिलेंगी तभी ईद में
नफ़रतों को भुलाकर ऐ “प्रीतम” यहाँ
प्यार की दो सदा रौशनी ईद में
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)