ग़ज़ल
——ग़ज़ल—-
तेरा चेहरा गुलाब हो जैसे
एक शायर का ख़्वाब हो जैसे
इस तरह मदभरी है आँख तेरी
इक पुरानी शराब हो जैसे
चाँद चेहरे पे जुल्फ़ यूँ लगती
बादलों का नक़ाब हो जैसे
हुस्न शफ्फाक ये तुम्हारा सनम
अर्श का माहताब हो जैसे
तेरी बोली पे ये गुमां होता
कोई बजता रबाब हो जैसे
रबाब-एक तरह की सारंगी।
सर से लेकर के पाँव तक दिलबर
अप्सरा सी शबाब हो जैसे
बिन तेरे जिन्दगी मेरी “प्रीतम”
उम्र भर का अजाब हो जैसे
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)