ग़ज़ल
——-ग़ज़ल——-
मेरा रब शायद मुझे भूला हुआ
या किसी ग़लती पे है रूठा हुआ
सोचा था दुनिया को दूँगा रौशनी
पर बना हूँ शम्स मैं ढलता हुआ
हो गया वह तो अदालत में बरी
क़ातिलों में पर मेरा चर्चा हुआ
किस तरह तुझसे मिलें ऐ ज़िन्दगी
सांस पर जब मौत का पहरा हुआ
बागबां ने ख़ुद कुचल डाले कली
तितलियों का दिल भी था सहमा हुआ
देख कर ज़ल्वा सुहाना हमनशीं
फिर मेरा दिल आज दीवाना हुआ
इश्क़ सच्ची अब कहाँ “प्रीतम” बची
कौन मज़नूँ की तरह शैदा हुआ
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)