ग़ज़ल
—–ग़ज़ल—-
तुम्हारे झूठ का तख़्ता पलटने वाला है
वतन में सच का ये सूरज निकलने वाला है
यक़ीं नहीं है मुझे अब तुम्हारे वादों का
शिरोमणी जी का ही नाम चलने वाला है
लगा रहे थे जो गोते मियाँ समंदर में
ये दायरा भी तुम्हारा सिमटने वाला है
समझ गयी है ये जनता तुम्हारी मक्कारी
तू खोटा सिक्का है जो अब न चलने वाला है
हुआ है बबुआ का हाथी से आज गठबंधन
विकास देश का हर सूँ वो करने वाला है
सिपहसालार हैं नादिर वसीम इंद्राणी
शफीक़ यस पी का भी साथ मिलने वाला है
वतन में गंगा बहाएँ विकास की “”प्रीतम””
मुहर सभी की तो हाथी पे लगने वाला है
Write by—
. प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)