ग़ज़ल
——-ग़ज़ल—–
हो जिसका बागबां दुश्मन वो हर बागान ख़तरे में
कली की कमसिनी फूलों की है मुस्कान ख़तरे में
भला बरसेंगी कैसे रहमतें अल्लाह की यारों
हो जिस घर में बुजुर्गों का अगर सम्मान ख़तरे में
सवारी कर रही शैतानियत जब ज़ेह्न पर सबके
भला फिर किस तरह होंगे नहीं भगवान ख़तरे में
अगर रघुनाथ का है हाथ सिर पर तो भला कैसे
सिया लक्ष्मण भरत होंगे या फिर हनुमान ख़तरे में
सरे-बाजार रिश्वत का करें व्यापार कुछ अफ़सर
इसी से आदमी का पड़ गया ईमान ख़तरे में
जिन्हें सौंपा वतन की डोर कि वो अच्छा करेंगे कुछ
मगर उसके ही कारण है ये हिन्दुस्तान ख़तरे में
नहीं रोका जो जयचंदों को तो फिर सोच लो ”प्रीतम”
हमारे देश की पड़ जाएगी पहचान ख़तरे में
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)