ग़ज़ल
किसी-किसी की नज़र आसमान होती है।
हसीन ख्वाब जमीं शादमान होती है।
जिन्हें है खौफ़ नहीं रास्तों की मुश्किल का
बला का जोश इरादों में जान होती है।
यहाँ जो हौसले अपने बुलंद रखते हैं
उन्हीं परिंदों की ऊँची उड़ान होती है।
रुला रहे हैं किसानों के हाथ के छाले
इन्हीं के स्वेद से भूमि की शान होती है।
सियासतें यहाँ मजहब के नाम होती हैं
फ़रेबी जात की नकली दुकान होती है।
चुकाते कर्ज़ जवां जख़्म सह के सीने पे
लहू में जोश इरादों में जान होती है।
मुसीबतें ही सिखातीं हमें हुनर ‘रजनी’
यही घड़ी तो सही इम्तिहान होती है।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
महमूरगंज, वाराणसी (उ. प्र.)
संपादिका-साहित्य धरोहर