ग़ज़ल
ज़रा सी ठेस लग जाने से ये टूटा नही होता
बना पत्थर का होता काश दिल शीशा नही होता
मुआफी माँग लेते हैं तो इज़्ज़त और बढ़ती है
मुआफी माँगने से आदमी छोटा नहीं होता
ज़लीलो ख्वार न होते कभी दुनिया की नजरों में
ज़मीर अपना मियाँ तुमने अगर बैचा नहीं होता
हमेशा टूटते देखे हैं हमने ख्वाब भी लेकिन
कभी ऐसा भी हो जाता हे जो सोचा नही होता
अगर ना माँगता उस से विरासत बाप दादा की
तो फिर भाई भी मेरा इस तरह रूठा नही होता
बड़ी मेहनत से बनता हे बड़ा इन्सान दुनिया में
उठा कर ऐडियां अपनी कोई ऊंचा नहीं होता
न पड जाना कहीं तुम इश्क के चक्कर में ऐ आतिफ
मरज़ ऐसा हे ये इसमें कोई अच्छा नही होता
इरशाद आतिफ (अहमदाबाद )
09173421920