ग़ज़ल
* ——- ग़ज़ल ——
दिलों में प्यार की शम्मा जलाने हम चले आए
मुहब्बत ही करो सबसे जताने हम चले आए
न हासिल कुछ तुम्हें होगा तनफ़्फ़ुर से जहां वालों
जियो ख़ुद और जीने दो जताने हम चले आए
ख़सारा है तुम्हारा भी समझ लो ये सिततगर तुम
तुम्हारी आँख से पर्दा हटाने हम चले आए
तुम्हारा ये निशां मिट जाए ना दुनिया के नक़शे से
यही एहसास तुम सबको दिलाने हम चले आए
ज़रा औक़ात में रहना समझ कमज़ोर मत हमको
तुम्हे रस्ता ये दोज़ख़ का दिखाने हम चले आए
बनाया जो महल तुमने बहा इंसानियत का खूँ
तुम्हारा वो महल खण्डहर बनाने हम चले आए
तिरंगा गाड़ देंगे आज छाती पर तुम्हारी ही
ये क़र्ज़ा मिट्टी का “प्रीतम” चुकाने हम चले आए
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)*