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18 Feb 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

—— ग़ज़ल—–
सबपे रहमत ख़ुदा कीजिएगा
दिल की दौलत अता कीजिएग

डूब जाए न क़श्ती भँवर में
ऐसा मत नाखुदा कीजिएगा

दोस्ती में कभी दोस्तों तुम
दोस्त से मत दगा कीजिएगा

जो ग़रीबी में जीते यहाँ पर
उनका भी कुछ भला कीजिएगा

कितनी मुश्क़िल से ख़ुशियाँ मिली हैं
अब न फिर ग़मज़दा कीजिएगा

मेरी सूनी निगाहों में दिलबर
प्यार बन कर बसा कीजिएगा

धन से “प्रीतम” न होगे बडे़ तुम
दिल को अपने बड़ा कीजिजगा

प्रीतम राठौर भिनगाई
. श्रावस्ती (उ०प्र०)

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