ग़ज़ल
——ग़ज़ल——
क्या नहीं मुल्क़ में ख़ुशियों का सबेरा होगा
कब तलक यूँ ही तनफ़्फ़ुर का अँधेरा होगा
आए गा शम्स कोई ताब से जिसकी डर कर
फिर नहीं ज़ुल्म का कोहरा ये घनेरा होगा
इस सियासत की हवेली में बताओ यारों
उल्लुओं का भला कब तक के बसेरा होगा
आग में बुग्ज़ो हसद के ही जले ये भारत
ख़्याल ऐसा तो किसी ने न उकेरा होगा
अह्ले गुलशन में ख़िज़ाओं के सिवा किस दिन
भौंरे तितली व बहारों का भी डेरा होगा
जुर्म के साँपों को “प्रीतम” जो पकड़ लेता है
भेजता मेरा खुदा ऐसा सपेरा होगा
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)