ग़ज़ल
फ़जां की तरह से —-बदल जाओ गे तुम
मुझे छोड़ तन्हा —-निकल जाओ गे तुम
मेरी बात मानों ————रहो दूर मुझसे
तपिश से हमारी— पिघल जाओ गे तुम
शरारा हूँ मुझको न समझो सितारा
छुओगे जो मुझको तो जल जाओगे तुम
कि तुम चलने वाले हो मग़रिब की जानिब
ये दावा है मेरा कि ढल जाओ गे तुम
मैं ग़म का हूँ बादल ऐ काग़ज़ की क़श्ती
जो थामोगे दामन तो गल जाओ गे तुम
मैं गिरता महल हूँ समझ लो ऐ “प्रीतम”
ये मत सोच लेना सँभल जाओ गे तुम
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)