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27 Dec 2018 · 1 min read

ग़ज़ल

——–ग़ज़ल——–
212-212-212–2

हिज़्र की —–रात सोने न देती
ख़्वाब कोई– –सँजोने न देती

दिल की धड़कन भी रूठी है ऐसे
सांस का बोझ ढोने —— न देती

मुझसे रूठी है -काली घटा यूँ
बारिशे इश्क़ ——–होने न देती

दुनिया दिल पर –लगाए है पहरा
बीज उल्फ़त —–के बोने न देती

इतनी ज़ालिम है वो दिलरुबा जो
दर्द देकर ———-भी रोने न देती

क्या कहूँ दिल्लग़ी की ऐ “प्रीतम”
दिन भी कोई – सलोने न देती

प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)

1 Like · 221 Views
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