ग़ज़ल
——–ग़ज़ल——–
212-212-212–2
हिज़्र की —–रात सोने न देती
ख़्वाब कोई– –सँजोने न देती
दिल की धड़कन भी रूठी है ऐसे
सांस का बोझ ढोने —— न देती
मुझसे रूठी है -काली घटा यूँ
बारिशे इश्क़ ——–होने न देती
दुनिया दिल पर –लगाए है पहरा
बीज उल्फ़त —–के बोने न देती
इतनी ज़ालिम है वो दिलरुबा जो
दर्द देकर ———-भी रोने न देती
क्या कहूँ दिल्लग़ी की ऐ “प्रीतम”
दिन भी कोई – सलोने न देती
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)